Tuesday, October 19, 2010

श्री गणपति प्रसंग

भारत भवन भोपाल में 9 और 10 अक्टूबर को -युवा 2- का आयोजन था। हिंदी के बीस संभावनाशील युवा रचनाकारों का कहानीपाठ। कहानीकार मित्रों से तो भेंट हुई, लेकिन एक चित्रकार प्रतिभा से भी परिचय हुआ। अर्पिता रेड्डी। वह हैदराबाद की हैं। उनकी पेंटिंगों की प्रर्दशनी लगी थी। ऐसे दौर में जबकि अबूझ रेखाओं और अमूर्त चित्रों का खूब चलन हैं, अर्पिता केरल की पारंपरिक चित्रकला को आगे बढ़ा रही हैं। लखनऊ से आईं कहानीकार गजल जैगम ने रविवार की शाम के सत्र से पहले इस प्रदर्शनी के बारे में बताया, जो -युवा 2- आयोजन के परिसर में लगी थी। गजल की बात से कोई आकस्मिक उत्साह पैदा नहीं हुआ, लेकिन फिर जिस बात को सुनकर मैं अंदर जाने को मजबूर हुआ, वह यह कि भीतर किसी ने सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण और भगवान गणपति के अनूठे चित्र बनाए हैं।
यह अर्पिता की चित्रकला थी। केरल चित्रकला के पारंपरिक पंचरंग (लाल, पीला, हरा, काला और सफेद) में रंगी। श्रीकृष्ण और गणेश के विभिन्न खूबसूरत चित्र। जिस चित्र ने मन मोह लिया, वह था पंचमुखी गणपति। यूं तो सभी ने पंचमुखी गणेश के चित्र देखे हैं, लेकिन अर्पिता के लाल आधार वाले चित्र में जो सबसे खास था... और जो अब तक मैंने कहीं नहीं देखा, वह था गणपति के माथे का चंद्रमा उनकी मुट्ठी में सजा!!
क्या यह चित्रकार की कल्पना थी?
अर्पिता से बात करने पर मालूम हुआ कि यह उनके गुरु की पे्ररणा थी।
* * *
जब से सोनाली इंदौर गई है, तब से घर में पूजा नहीं हुई।
परिणाम यह कि इस बार बीती गणेश चतुर्थी पर घर में गणपति नहीं आए। सुबह स्नान करके प्रतिदिन जब पूजा घर के आगे खड़ा होता हूं, तो उसी जगह नजर ठहरती है, जहां ‘नए’ गणपति नहीं विराजे।
गणपति घर में हर बरस आते हैं। किसी देवता की तरह नहीं। न अतिथि की तरह। वह घर के सदस्य होकर आते हैं। बीते बरस की उनकी प्रतिमा विसर्जित होती है। गणपति हमारे संरक्षक हैं, मार्गदर्शक हैं, सखा हैं। गणपति का घर में सबसे नाता है। अपनापा है। सबके लिए उनसे पास कुछ है।
गणपति हमारे ‘सांताक्लॉज’ हैं।
गणपति कनु के ‘हाथी बप्पा’ हैं। वह ‘हाथी बप्पा’ के रूप पर मोहित है।
* * *
हर बरस नए गणपति आते हैं, तो जीवन फिर नया हो जाता है। सुखद और शुभ। उनके आते ही सारा अशुभ, सारे विघ्न अपने आप विदा हो जाते हैं। नई ऊर्जा आती है। घर में। तन में। मन में।
गणपति का यूं हर साल नए रूप में आना लगातार मन में इस विश्वास को मजबूत करता है कि देह रूप बदलती है, जीवन नित्य है।
गणपति के इस बार न आने से एक बात साफ हुई कि जब सोनाली नहीं होती, तो घर में कोई नहीं आता।
नातेदार, मित्र, परिचित... और देवता तक कूच कर जाते हैं।
घर के सारे आयोजन उससे ही हैं।
भगवती उमा की अनुपस्थिति में सोमनाथ के ठिकाने पर भूतों का डेरा रहता है।
क्यों...?
कोई बतलाए कि हम समझाएं क्या...?

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