Thursday, September 4, 2008

बॉलीवुड का स्वर्णिम दौर


बॉलीवुड सिनेमा के आर्थिक पक्ष पर चर्चा करना अब वक्त खराब करने से कम नहीं। सही आंकड़े कोई प्रोडक्शन हाउस जारी नहीं करता। सितारे अपनी फीस झूठ बताते हैं। कमाते पंद्रह हैं, बताते पचास हैं। हिट का गणित भी ऐंद्रजालिक है...। जिस फिल्म को समीक्षक फ्लॉप बताते हैं, उसके रिलीज होने के दूसरे-तीसरे दिन ही शहरों में फिल्म के पोस्टर चिपके होते हैं, सुपर हिट!! क्या झूठ मानिए, क्या सच...? खुद सिनेमावाले इस पर एकमत नहीं दिखते। परंतु इसमें संदेह नहीं कि हिंदी सिनेमा ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिसमें धन की बाढ़ आई हुई है, जो बिहार की जल-बाढ़ के विपरीत कहीं सुखदायी है। अत: अब सिनेमा के आर्थिक मसले की चर्चा हो, तो उसके सुखद पक्ष पर ही हो सकती है। वह भी अतिशयोक्ति की तरह। जितनी अतिशयोक्ति, उतनी बढिय़ा चर्चा। करोड़ का आंकड़ा अब फिल्म में निर्माण में अपना जादू खो चुका है। फिल्म मेकिंग में अब 25 और 50 के बाद फिल्में 100 करोड़ की बात करने लगी हैं। हालांकि अब भी यह हॉलीवुड से काफी कम बताया जाता है। बॉलीवुड जिस आर्थिक स्वर्णिम दौर से गुजर रहा है, उसे देखते हुए टे्रड पंडितों का यही मानना है कि वह दिन दूर नहीं, जब बॉलीवुड में हर साल कम से कम 50 से 100 ऐसी फिल्में बनेंगी, जो 50 से 100 करोड़ के बजट की होंगी। फिलहाल यह अतिशयोक्ति लगे, परंतु सचमुच ऐसा वक्त आने लगा है। कारण...? प्रोड्यूसर अब पूरी दुनिया में फैल चुके बॉलीवुड फिल्मों के बाजार को देख कर गणित बैठाते हैं। वह दौर नहीं रहा कि सिर्फ मुंबई में चलने से फिल्म हिट कहलाएगी।प्रोड्यूसरों ने फिल्मों की लागत क्षमता का बढऩा मंजूर किया है, तभी निर्देशकों, ऐक्टरों और तकनीशियनों की फीस बहुत मोटी हो चुकी है। मामला तो यहां तक है कि हिट होने के बाद डायरेक्टर और ऐक्टर फिल्म के निर्माण में मुनाफा हासिल करते हैं और कई बार खुद भी प्रोड्यूसर हो जाते हैं। निर्देशक आशुतोष गोवारिकर, मधुर भंडारकर, विशाल भारद्वाज कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं। ऐक्टरों में देखें, तो शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान, ऋतिक रोशन के बाद अब सैफ अली खान की फिल्म निर्माण में लग गए हैं। सभी सितारे फिल्मों में काम करने की मोटी फीस तो लेते हैं, साथ ही प्रोड्यूसर के मुनाफे में हिस्सा भी।रोचक तथ्य यह है कि फिल्म का निर्माण करने वालों में उन लोगों का भरोसा बढ़ा है, जो फिल्मों के लिए धन एडवांस में जारी करते हैं। बीच में वह वक्त चला गया था, जब वितरक निर्माणाधीन फिल्मों के रशेज देख कर प्रोड्ूयूसर को एडवांस पैसा देते थे। परंतु यह वक्त फिर लौट आया है। अब तो स्थिति यह है कि कुछ मामलों में फिल्म घोषित हुई और वितरक ने कई करोड़ में अधिकार खरीद लिए, विश्व वितरण के। क्या फिल्म बनेगी, कैसी बनेगी...? सोचा भी नहीं। हाल में बॉलीवुड में ऐसा सबसे बड़ा सौदा हुआ, जब वितरक कंपनी स्टूडियो 18 ने विपुल शाह के निर्देशन में बनने वाली फिल्म 'लंदन ड्रीम्स' (सलमान खान, अजय देवगन) के अधिकार 120 करोड़ रुपये में खरीदे। फिल्म शुरू भी नहीं हुई और प्रोड्यूसर ने मोटा मुनाफा कमा लिया। अब इससे बढ़ कर स्वर्णकाल की नजीर क्या हो सकती है?

1 comment:

cartoonist ABHISHEK said...

sahi baat likhi hai aapne...