Thursday, December 4, 2008

बचाएं इस रियेलिटी से


बीते हफ्ते मुंबई को करीब 60 घंटों तक बंधक बनाए रखने वाली आतंकी दुर्घटना को क्या आप बड़े परदे पर देखना चाहेंगे? यह सवाल खुद के पूछने का है। मुंबई में जो कुछ हुआ, लोग अपने ढंग से उसकी व्याख्या कर रहे हैं। कोई देश/राजनीति/सुरक्षा तंत्र के लिए इसे शर्मनाक बता रहा है, तो कोई इसे आतंकियों को पोसने वाले पड़ोसी पाकिस्तान को करारा जवाब देने का मौका। किसी के लिए यह पूरा घटनाक्रम राजनीतिक रोटियां सेंकने वाला तंदूर है, तो किसी के लिए सबक लेने का पाठ्यक्रम। मुंबई की गोद में बैठे बॉलीवुड के लिए यह घटना उसे उधेड़बुन में डालने वाली है। कोई और मौका होता, तो इंडस्ट्री के तमाम 'भट्ट' अब तक इस विषय पर तत्काल 'रियलिस्टिक' फिल्म बनाने की घोषणा कर देते। मुंबई के 1993 में हुए बम धमाके, उसके बाद दंगे, मुंबई का अंडरवल्र्ड, मुंबई पर बारिश का बेरहम कहर, मुंबई की लोकल टे्रनों में बम ब्लास्ट... इन सब पर फिल्म बनाने से खूब पब्लिसिटी मिलती है। परंतु इस बार मामला काफी संवेदनशील है और कोई इस पर फिल्म बनाने की बात करके लोगों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता। इससे पहले कि कोई फिल्मकार एक शब्द कहता, एक एसएमएस लोगों के पास पहुंच गया। जो कह रहा है, 'हम महेश भट्ट, राम गोपाल वर्मा, संजय गुप्ता, राहुल ढोलकिया और अपूर्व लखिया जैसों से पूरी विनम्रता से अपील करते हैं कि मुंबई में जो हो रहा है, वह बहुत भयावह और दुखद है। इस पर 'रियलिस्टिक' फिल्म बना कर इसे भव्यता प्रदान न करें।' अंत में यह संक्षिप्त संदेश यह भी कहता है, 'भगवान हमारे देश को इन आतंकियों और ऐसे फिल्मवालों से बचाए।'वैसे निर्माता-निर्देशक रामगोपाल वर्मा जाने क्या सोच कर महाराष्ट्र के अब कुर्सी खो चुके मुख्यमंत्री, विलास राव देशमुख और उनके अभिनेता बेटे, रितेश देशमुख के साथ ताज महल होटल में आतंकियों द्वारा मचाई तबाही देखने चले गए। मीडिया ने इसे उनका 'टैरर टूरिज्म' करार दिया!! क्यों...? क्योंकि रामू 'रियलिस्टिक' फिल्में बनाते हैं और उन्हें ताज में देखते ही अनुमान लगा लिया गया कि वे मुंबई पर हुए आतंकी हमले पर फिल्म बनाने की तैयारी में हैं। रामू और तत्कालीन मुख्यमंत्री दोनों की फजीहत हो गई। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यदि मुख्यमंत्री के साथ ताज में अमिताभ बच्चन होते, तो क्या यह नहीं कहा जाता कि वे मुंबई के जिम्मेदार और वरिष्ठ नागरिक हैं! मुंबई की स्थिति से वे चिंतित हैं, इसीलिए मुख्यमंत्री के साथ गए...? क्या रामू के मामले में निष्कर्ष निकालने में मीडिया ने जल्दबाजी की?रामू पर सवाल उठाने वाला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी कठघरे में है। जिस तरह से उसने 'युद्ध' लाइव दिखाया, उससे आतंकियों और उनके आकाओं को पल-पल घटनास्थलों की जानकारी मिल रही थी! इससे पुलिस और सेना का काम मुश्किल हुआ। परंतु इस सीधे प्रसारण ने बॉलीवुड को भी संकट में डाला है। लाइव कवरेज के बाद बॉलीवुड के पास ज्यादा कुछ इस विषय पर कहने को नहीं रह गया है। दूसरे, जिस तरह से लोगों ने घर बैठे सब देखा, उससे देश के सैकड़ों दुश्मनों से अकेले निपट लेने वाले फिल्मी नायक की छवि ध्वस्त हो गई है। सबने देख लिया है कि ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हीरो, शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन जैसे बनते हैं। किसी फिल्मी खान, दत्त या रोशन की तरह नहीं। निश्चित मानिए कि यह घटना फिल्म बनाने वालों के सामने यह चुनौती पेश करेगी कि भविष्य में वह अपने ऐक्शन हीरो को किस तरह से जांबाज दिखाएं?

No comments: