Wednesday, December 10, 2008

जो अपराधी नहीं होंगे...


अमिताभ बच्चन जैसे सुपर सितारे को भी सरकारी तथा निजी सुरक्षा गार्डों से घिरे होने बावजूद जेब में पिस्तौल रखनी पड़ती है!! यह बात सामने नहीं आती, अगर मुंबई हवाई अड्डे पर उनकी पिस्तौल और उसके लाइसेंस की जानकारियां आपस में मेल खा जाती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बात खुल गई। साफ है कि देश में आज आम हो या खास, हर कोई अपनी जान की सुरक्षा के लिए चिंतित है? दिल्ली, जयपुर, मुंबई से लेकर गुवाहाटी और बंगलूरू तक जनता सरकार से पूछ रही है कि क्या सिर्फ नेताओं को सुरक्षा की जरूरत है? जनता का क्या... जो आतंकियों के बम-बंदूकों में मरी जा रही है। सो, अब चर्चा चल पड़ी है कि क्या लोगों को पिस्तौल, बंदूक जैसे हथियारों के लाइसेंस देने के नियमों को ढीला करने का वक्त आ गया? किसी समय अंडरवल्र्ड से संबंध और अवैध हथियार रखने के मुकदमों के साये में जी रहे संजय दत्त इसके पक्ष में हैं। एक टीवी चैनल पर उन्होंने कहा है कि मैं अपने कुछ दोस्तों से मुंबई पर आतंकी हमले के बाद बात कर रहा था। सब सहमत थे कि यदि उस दिन ताज या ओबेराय में दस लोगों के पास भी निजी सुरक्षा के लिए पिस्तौल होती, तो तस्वीर बदल भी सकती थी।वाकई। परंतु किसी भी आम-ओ-खास को निजी हथियार का लाइसेंस आसानी से देने का मसला काफी टेढ़ा है। समाज में गुस्सा बढ़ रहा है। व्यक्ति के घर-दफ्तर में तनाव बढ़ गया है। गला काट प्रतिद्ंवद्विता के दौर में एक-दूसरे की असहमति सहने की कूवत कम हो रही है। क्षमा का भाव लगभग समाप्त है। ऐसे में हमारे समाज को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले फिल्मी हीरो या तो पिस्तौल लेकर चल रहे हैं या फिर उसे आसानी से मुहैया कराने की वकालत कर रहे हैं!! बंदूक और पिस्तौल का भी नशा होता है। नशा व्यक्ति को अनियंत्रित करता है। वैसे, इससे बेपरवाह चंबल में स्थित शिवपुरी शहर के प्रशासन ने इस साल एक अनोखी योजना लागू की। इलाके के जो पुरुष नसबंदी कराएंगे, उन्हें बंदूक के लाइसेंस जल्दी मिल जाएंगे!! परिणाम यह कि योजना से पहले बीते एक बरस में मात्र 8 पुरुषों ने नसबंदी कराई थी, योजना के बाद अब तक करीब 250 मर्द ऐसा करा चुके हैं। क्या यह योजना देश में जल्दी बंदूक का लाइसेंस चाहने वालों के लिए लागू की जा सकती है? निश्चित रूप से फिल्मी सितारों पर भी यह बात लागू होगी...!!इसी साल सोहा अली खान के बारे में खबर थी कि गुडग़ांव प्रशासन ने उन्हें 18 की उम्र में बंदूक का लाइसेंस दिया था। जबकि कानून में 21 से पहले ऐसे हथियारों के लाइसेंस की मनाही है। बात हाई-प्रोफाइल थी, सो बिना तूल के मामला निपटा लिया गया। देश में रईसों के बिगडैलों की खबरें कम नहीं आतीं। वैसे देखा यही गया है कि फिल्मी सितारे सफलता का नशा संभाल नहीं पाते। उस पर यदि वे खुलेआम पिस्तौल लेकर घूमेंगे और उनसे युवा प्रभावित होंगे, तो समाज का क्या होगा? वास्तव में, नेता-अभिनेता तो सुरक्षा का सामान साथ लेकर चल सकते हैं। परंतु आम आदमी क्या करे जो सडक़ पर खुला चलता है। हिंदी की वर्तमान कविता के प्रमुख हस्ताक्षर राजेश जोशी ने लिखा है-सबसे बड़ा अपराध है इस समय/निहत्थे और निरपराध होना/जो अपराधी नहीं होंगे/मारे जाएंगे...।बीती सदी के आखिरी वर्षों में लिखी गई इन पंक्तियों में आम आदमी की जो लाचारी झलकती थी। वही अब भी झलक रही है।

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