Wednesday, December 17, 2008

मंत्र सिर्फ एक है

बॉलीवुड परेशान है कि लोग फिल्म देखने नहीं निकल रहे। पिछले कुछ सालों में मॉल और मल्टीप्लेक्स कल्चर ने लोगों में 'आउटिंग' का आकर्षण पैदा किया था। लेकिन अब वहां पर बमों के डर ने लोगों को घर में रहने को मजबूर कर दिया है। देश के तमाम हिस्सों में 'बम' का डर जनता के अचेतन मन में फिट हो चुका है!! मायानगरी मुंबई का हाल यह है कि लोकल टे्रनों में और सडक़ों पर अब सुबह के वक्त 26/11 से पहले जैसी भीड़ नहीं दिखती। दिन भर वातानुकूलित मॉल में विंडो शॉपिंग करने का उत्साह लोगों में कम हो गया है। मल्टीप्लेक्स खाली हैं। बिजली-पानी का खर्च नहीं निकल रहा। तय हो गया है कि मॉलों में खुली दुकानों का किराया नए साल में नहीं बढ़ेगा। मल्टीप्लेक्स भी सस्ते टिकटों की योजना बना रहे हैं। परंतु इस आलम के लिए बमों के अलावा एक और कारण जिम्मेदार है। आम आदमी की जेब का खस्ता हाल। महंगा दाल-दाना, दूध-सब्जी...। मनोरंजन जरूरी है या किचन, बच्चों की पढ़ाई, घर का बिजली-पानी-पेट्रोल? आम आदमी के पास जवाब है। परंतु बॉलीवुड को इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा कि आखिर कैसे दर्शकों को सिनेमाघरों में लाया जाए? बीते हफ्तों में आई दोस्ताना, दस्विदानिया, युवराज, ओय लकी लकी ओय, सॉरी भाई, मीरा बाई नॉट आउट, ओ माई गॉड, दिल कबड्डी, महारथी और गुमनाम-द मिस्ट्री का बुरा हाल है। उधर, फिल्मों की पायरेसी ने बॉलीवुड की कमर तोड़ रखी है। 'रब ने बना दी जोड़ी' की रिलीज से पहले ही लोग पायरेटेड सीडी बेचने वालों से पूछ रहे थे, 'क्यों भाई, आ गई क्या...?'वास्तव में बॉलीवुड के सवाल का एक ही जवाब है। फिल्म अच्छी है, तो लोग सिनेमाघरों में जरूर जाएंगे। फिर चाहे आंधी आए या तूफान। सिनेमा के लिए दर्शक जुटाने का इससे बढ़ कर कोई मंत्र नहीं। जब 'रंग दे बसंती' आई थी, तो लोगों ने एक-दूसरे को इस बात के लिए पे्ररित किया था कि इसे हॉल में ही देखें। पायरेटेड सीडी पर नहीं। ऐसा ही हुआ भी। सच तो यह है कि बाजार के चाहे सारे काम जुगाड़ से संवर जाएं, परंतु दर्शकों को जुगाड़ से सिनेमाघरों में नहीं खींचा जा सकता। फिलहाल उम्मीदें शाहरुख की 'रब ने बना दी जोड़ी' से हैं। आने वाले दिनों में 'गजनी' और 'चांदनी चौक टू चाइना' पर भी नजरें हैं। लेकिन शर्त एक ही कि फिल्म अच्छी होगी, तो सिनेमाघर भरेंगे। वर्ना ना देखने के बहाने सौ।असल में बॉलीवुड के पास तात्कालिक या दूरगामी संकटों से निपटने की कोई योजना नहीं होती। जरा हॉलीवुड को देखिए। दुनिया भर के बाजारों में पिछले दिनों आई मंदी के कारण हॉलीवुड के बड़े स्टूडियोज को भारी नुकसान हुआ है। अब ये स्टूडियो साल 2009 और 2010 के लिए ऐसी कहानियों की तलाश में जुट गए हैं, जिनमें 'युनिवर्सल अपील' हो। उनके सामने तस्वीर साफ है कि कैसी फिल्में बनानी है? वे दुनिया के हर कोने में सिनेमा के बाजार से धन खींचेंगे। उनका निशाना बॉलीवुड भी होगा। इससे मुकाबले के लिए क्या बॉलीवुड ने कुछ सोचा है? बिल्कुल नहीं। यह साल बॉलीवुड के लिए अच्छा नहीं रहा। बड़े बैनरों-सितारों की फिल्में ध्वस्त हुईं। अब जबकि हॉलीवुड अपनी रणनीति अगले 2 सालों के लिए बना चुका है और अच्छी कहानियों की तलाश में है, तो बॉलीवुड को भी गंभीर होना चाहिए। सिर्फ नकल से कब तक काम चलेगा?

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