Thursday, December 11, 2008

संजय का संसद स्वप्न

देश में सडक़ से संसद तक पहुंचने का रास्ता आसान है या फिर जेल से संसद तक का सफर...? चर्चा करके देखिए, इस सवाल का जवाब कमोबेश समान ही होगा। फिल्म अभिनेता संजय दत्त इन दिनों संसद में कुर्सी संभालने पर विचार कर रहे हैं। देश में ऐसे कई सांसद-विधायक हैं, जो अपना दामन पाक-साफ साबित करने की लड़ाई अदालतों में लड़ रहे हैं। संजय दत्त को 1993 के हुए मुंबई बम धमाकों के दौरान अवैध ढंग से हथियार रखने के मामले में दोषी पाया गया। टाडा कोर्ट ने पिछले साल उन्हें 6 वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। संजय ने इन निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है और इन दिनों जमानत पर बाहर हैं। इस मामले में जो भी फैसला आए, वे अगले साल अपै्रल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव तो लड़ ही सकते हैं। असल में, संजय दत्त से ज्यादा उनकी पत्नी मान्यता चाहती हैं कि उनके पति चुनाव लड़ें। मान्यता का विश्वास है कि संजू देश के किसी भी कोने से चुनाव लड़ें। वे जीतेंगे अवश्य। संजय को किसी पार्टी की भी जरूरत नहीं।पिछले कुछ महीनों में मान्यता बॉलीवुड की 'हाई-प्रोफाइल वाइफÓ के रूप में उभरी हैं। इस साल फरवरी में संजय से विवाह से पहले उनकी कोई पहचान नहीं थी। बॉलीवुड में उन्हें कुछ लोग एक स्ट्रगलर के रूप में जरूर जानते थे। खैर, मान्यता अब संजय की पत्नी ही नहीं, मित्र और मंत्री भी हैं। मान्यता के साथ संजय की शादी पर कई सवाल उठे। परंतु अब सब ठीक है। संजय से विवाह के बाद मान्यता एक समाजिक कार्यकता के रूप में अपनी छवि बनाने में जुटी हैं। उनकी अपनी निजी संस्था है, 'डैमेज'। जो मुंबई में दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले गरीबों की आर्थिक और अन्य मदद करती है। इस संस्था के लिए पैसा खुद संजय दत्त देते हैं। वो जो भी फिल्म साइन करते हैं, उसकी फीस में से 5 से 7 लाख रुपया, मान्यता की संस्था को जाता है। पिछले दिनों मुंबई पर आतंकवादी हमले के विरुद्ध बॉलीवुड का जो 'मोमबत्ती मूवमेंट' हुआ, उसे आयोजित करने में मान्यता का बड़ा हाथ था। लोग यह सोचने लगे हैं कि क्या मान्यता संजय की मां, नर्गिस दत्त के पदचिह्नों पर चलने की कोशिश कर रही हैं?मान्यता का दावा है कि संजय दत्त बहुत अच्छे नेता साबित होंगे क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा है। वे दूसरों का दुख-दर्द समझते हैं। संजय नर्म दिल इनसान हैं। सच तो यह है कि संजय अब राजनीति में आ चुके होते। उनके पिता, सुनील दत्त के निधन के बाद जब कांगे्रस ने उनके राजनीतिक वारिस की खोज शुरू की, तो पहला नाम संजय का ही था। परंतु संजू बाबा के विवादास्पद जीवन के कारण उनकी बहन प्रिया को सुनील दत्त की गद्दी दी गई। प्रिया ने अपने काम से इस फैसले को सही साबित भी किया। संजय अपनी दोनों बहनों, प्रिया और नम्रता से बहुत प्यार करते हैं। अत: उन्हें इस बात की टीस नहीं कि पिता के राजनीतिक वारिस वे नहीं बन सके। परंतु राजनीतिक चेतना उन्हें खून में मिली है। संजय कहते हैं कि मैं पहले भारतीय हूं और उसके बाद अभिनेता। जब मुंबई पर हुए आतंकी हमले की खबर उन्हें मिली, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, 'काश! मैं कमांडो होता...।' अपने अगले जन्मदिन पर वे 50 साल के हो जाएंगे। अब देखना होगा कि संजय सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा कब तक करते हैं?

No comments: